Tuesday, May 11, 2010

संतोषी माँ

चौपाई
जै युग युग की आदि शक्ति । जग में प्रचलित है तव भक्ति ।।
आदि मध्य और अवसाना । तेरी गति विधि कोई न जाना ।।

निर्मल श्रद्धा में होती । थोड़े में संतुष्ट हो जाती ।।
कलि में नाम धार्यो सन्तोषी । अग्नि तुल्य प्रत्यक्ष विशेखी ।।

कला ज्ञान बल विद्या दात्री । तुम सम सरल सुखद नहिं धात्री ।।
सकल चराचर तुम से चलते । भूत प्रेत यमदूत सिंहरते ।।

दुष्ट दलन संहार कारिणी । माता तुम ब्रह्माण्ड धारिणी ।।
सरस्वती लक्ष्मी और काली । अमित शक्ति की खान निराली ।।

तुम्हारे शरण गहे कोई । मनोकामना पूरन होई ।।
तुम गणेश की माँ कन्या । तुमसे धरती हो गई धन्या ।।

ऋद्धि सिद्धि है तुम्हारी माता । मंगलमय वरदान के दाता ।।
ब्रह्मा विष्णु महेश त्रिमाया । उसका बल तुझमें है समाया ।।

सिर पर कंचन मुकुट सुहाता । सुन्दर रत्नसमूह दिखाता ।।
मधुर मनोहर मुखड़ा कोमल । पुष्पमाला और श्यामल कुन्तल ।।

अलंकार सोहित हैं अंग में । नव्य दिव्य तन गेरु रंग में ।।
सुन्दर वस्त्र में माला रखती । दर्शक के मन वश में करती ।।

पदम् त्रिरेख धरे दो हाथ । चतुर्भुजी को टेकहु माथ ।।
सन्मुख अमृत भरी सुराहि । साथ कामधेनु मनचाही ।।

स्वर्ण कलश रहता है आगे । भक्त्तों के सौभाग हैं जागे ।।
तुम्हारे भक्त्तिभाव जो पावे । अजर अमर जग में हो जावे ।।

नमो नमो जग तारन हारी । दु:ख दरिद्र तारो महतारी ।।
शुक्रवार दिन अति अनुकूला । सन्तोषी व्रत मंगल मूला ।।

बहुविध मात की पूजा कर । सन्तोषी की कथा श्रवण कर ।।
गुड़ और चना प्रसाद चढ़ावे । निराहार एक जून मनावे ।।
सावधान उस दिन यह राखे । भूल से खट्टा देवे न चाखे ।।
नहिं तो मातु कुपित हो जाती । वंश सहित संतान नसाती ।।

शुक्रवार सोलह व्रत राखे । उद्यापन उत्साह मनावे ।।
फिर तो इच्छा पूरन होई । मातु कृपा से देर न होई ।।

अद्भुत देवी चमत्कारिणी । पत्न में चिन्ता पीड़ा हरणी ।।
जापर कृपा मातु की होई । जीत सके न उसको कोई ।।

धन विवेक सुख शान्ति प्रदायिनी । इस युग की नवप्राण विधायिनी ।।
तुम सम देवी कोऊ नाहीं । देख लिया मैं त्रिभुवन माहीं ।।

दुख अति पाई बहु बेचारी । पति वियोग की वह दुखियारी ।।
नारियल खोपर पीकर पानी । भूस की रोटी खाई अभागिनी ।।
संतोषी का व्रत जो कीन्हा । पति सहित वैभव पा लीन्हा ।।

पीड़ा चिन्ता काटहु माता । अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।।
संतोषी उपवास करे जो । सुख सम्पति का भोग करे वो ।।

यहाँ वहाँ सब ठौर समाई । तुम्हरी महिमा कही न जाई ।।
मनवांछित वर पावै क्वारी । पाये सुहाग सधवा सन्नारी ।।

सुख धन जन सब मनोकामना । पूर्ण होगी सत्य जानना ।।
पाठ सवा सौ करै जो कोई । मिटै कष्ट सुख सम्पति होई ।।

दोहा
सन्तोषी संकट हरन, हे चमत्कार की मूर्ति ।
ग्रह बाधा को दूर कर, करो कामना पूर्ति ।।

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