Friday, June 18, 2010

श्रीकृष्णा जी की आरती




कुञ्जबिहारी की आरती
आरती कुञ्जबिहारी की श्री गिरिधर कृष्णमुरारि की . . . .
गले में वैजन्तीमाला, बजावे मुरली मधुर बाला, श्रवण में कुण्डल झलकाला ।
नन्द के नन्द श्री आनन्दकन्द, मोहन ब्रिजचन्द्र, राधिकारमण बिहारि की ।।
गगन सम अंग कान्ति काली, राधिका चमक रही आली, लतन में ठाढे बनमाली ।
भ्रमर सी अलक कस्तूरी तिलक, चन्द्र सी झलक, ललितछबि श्यामाप्यारि की ।।
जहाँ से प्रगट भई गंगा, सकलमलहारिणी श्री गंगा, स्मरण से होत मोह भंगा ।
बसि शिव शीश जटा के बिच, हरै अघकीच, चरण छबि श्री बनवारि की ।।
कनकमय मोरमुकुट बिलसे, देवता दर्शन को तरसे, गगन सो सुमन राशी बरसे ।
बजे मुर्छंग मधुर मिरदंग, ग्वालिनी संग, अतुल रति गोपकुमारि की ।।
चमकती उज्ज्वल तट रेणु, बज रही वृन्दावन वेणु, चहुँ दिशि गोपी ग्वाल धेनु ।
हँसत मृदुमन्द चान्दनीचन्द्र, कटत भवफन्द, टेर सुनु दीनदुखारि की ।।

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