Wednesday, June 16, 2010

Shiv Chalisa

दोहा
मंगलमय मंगल करन, करिवर वदन विशाल।
विघ्न हरण रिपु रूज दलन, सुमिरौ गिरजा लाल॥

चौपाई
जय गणेश बल बुद्दि उजागर। व्रक्तुन्द विद्या के सागर॥१
शम्भ्पूत सब जग से वन्दित। पुलकित बदन हमेश अनंदित॥२
शांत रूप तुम सिंदूर बदना। कुमति निवारक संकट हरना॥३
क्रीट मुकुट चंद्रमा बिराजै। कर त्रिशूल अरु पुस्तक राजै॥४
ॠद्दि सिद्दि के हे प्रिय स्वामी। माता पिता माता पिता वचन अनुगामी॥५
भावे मूषक की असवारी। जिनको उनकी है बलिहारी॥६
तुम्हरो नाम सकल नर गावै। कोटि जन्म के पाप नसावै॥७
सब मे पूजना प्रथम तुम्हारा। अचल अमर प्रिय नाम तुम्हारा॥८
भजन दुखी नर जो हैं करते। उनके संकट पल मे हरते॥९
अहो षडानन के प्रिय भाई। थकी गिरा तव महिमा गाई॥१०
गिरिजा ने तुमको उपजायो। वदन मैल तै अंग बनायो॥११
द्वार पाल की पदवी सुंदर। दिन्ही बैठायो ड्योडी पर॥१२
पिता शम्भू तब तप कर आए। तुम्हे देख कर अति सकुचाये॥१३
पूछैउं कौन कह्ना ते आयो। तुम्हे कौन एहि थल बैठायो॥१४
बोले तुम पार्वती लाल ह्नूं। इस ड्योडी का द्वारपाल ह्नूं॥१५
उनने कहा उमा का बालक। हुआ नही कोई कुल पालक॥१६
तू तेहि को फिर बालक कैसो। भ्रम मेरे मन में है ऐसो॥१७
सुन कर वचन पिता के बालक। बोले तुम मैं ह्नू कुलपालक॥१८
या मैं तनिक न भ्रम ही कीजे। कान वचन पर मेरे दीजे॥१९
माता स्नान कर रही भीतर। द्वारपाल सुत को थापित कर॥२०
सो छिन में यही अवसर अइहै। प्रकट सफल सन्देह मिटाइहै॥२१
सुन कर शिव ऐसे तब वचना। ह्रदय बीच कर नई कल्पना॥२२
जाने के हित चरण बढाये। भीतर आगे तब तुम आये॥२३
बोले तात न पाँव उठाओ। बालक से जी न रार बढाओं॥२४
क्रोधित शिव ने शूल उठाया। गला काट कर पाँव बढाया॥२५
गए तुम गिरिजा के पास। बोले कहां नारी विश्वास॥२६
सुत कसे यह तुमने जायो। सती सत्य को नाम डुबायो॥२७
तब तव जन्म उमा सब भाखा। कुछ न छिपाया शंभु सन राखा॥२८
सुन गिरिजा की सकल कहानी। हँसे शम्भु माया विज्ञानी॥२९
दूत भद्र मुख तुरंत पठाये। हस्ती शीश काट सो लाये॥३०
स्थापित कर शिव सो धड़ ऊपर। किनी प्राण संचार नाम धर॥३१
गणपति गणपति गिरिजा सुवना। प्रथम पूज्य भव भयरूज दहना॥३२
साई दिवस से तुम जग वन्दित। महाकाय से तुष्ट अनन्दित॥३३
पृथ्वी प्रद्क्षिणा दोउ दीन्ही। तहां षडानन जुगती कीन्ही॥३४
चढि मयूर ये आगे आगे। व्रक्तुन्द सो तुम संग भागे॥३५
नारद तब तोहिं दिय उपदेशा। रहनो न संका को लवलेसा॥३६
मातापिता की फेरी कीन्ही। भू फेरी कर महिमा लीन्ही॥३७
धन्य धन्य मूषक असवारी। नाथ आप पर जग बलिहारी॥३८
डासना पी नित कृपा तुम्हारी। रहे यही प्रभू इच्छा भारी॥३९
जो श्रधा से पढे ये चालीस। उनके तुम साथी गौरीसा॥४०

दोहा
शंबू तनय संकट हरन, पावन अमल अनूप।
शंकर गिरिजा सहित नित, बसहु ह्रदय सुख भूप।

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