Monday, May 31, 2010

परशुरामकृतं कालीस्तोत्रम्

परशुराम द्वारा काली स्तोत्र
परशुराम उवाच
नम: शंकरकान्तायै सारायै ते नमो नम:।
नमो दुर्गतिनाशिन्यै मायायै ते नमो नम:॥

नमो नमो जगद्धा˜यै जगत्क˜र्यै नमो नम:।
नमोऽस्तु ते जगन्मात्रे कारणायै नमो नम:॥

प्रसीद जगतां मात: सृष्टिसंहारकारिणि।
त्वत्पादे शरणं यामि प्रतिज्ञां सार्थिकां कुरु॥

त्वयि मे विमुखायां च को मां रक्षितुमीश्वर:।
त्वं प्रसन्ना भव शुभे मां भक्तं भक्तवत्सले॥

युष्माभि: शिवलोके च मह्यं दत्तो वर: पुरा।
तं वरं सफलं कर्तु त्वमर्हसि वरानने॥

जामदग्न्यस्तवं श्रुत्वा प्रसन्नाभवदम्बिका।
मा भैरित्येवमुक्त्वा तु तत्रैवान्तरधीयत॥

एतद् भृगुकृतं स्तोत्रं भक्तियुक्तश्च य: पठेत्।
महाभयात् समुत्तीर्ण: स भवेदवलीलया॥

स पूजितश्च त्रैलोक्ये त्रैलोक्यविजयी भवेत्।
ज्ञानिश्रेष्ठो भवेच्चैव वैरिपक्षविमर्दक:॥

अर्थ :- परशुराम बोले - आप शंकरजी की प्रियतमा पत्नी हैं, आपको नमस्कार है। सारस्वरूपा आपको बारम्बार प्रणाम है। दुर्गतिनाशिनी को मेरा अभिवादन है। मायारूपा आपको मैं बारम्बार सिर झुकाता हूँ। जगद्धात्री को नमस्कार-नमस्कार। जगत्कर्त्री को पुन:-पुन: प्रणाम। जगज्जननी को मेरा नमस्कार प्राप्त हो। कारणरूपा आपको बारम्बार अभिवादन है। सृष्टि का संहार करनेवाली जगन्माता! प्रसन्न होइये। मैं आपके चरणों की शरण ग्रहण करता हूँ, मेरी प्रतिज्ञा सफल कीजिये। मेरे प्रति आपके विमुख हो जाने पर कौन मेरी रक्षा कर सकता है? भक्तवत्सले! शुभे! आप मुझ भक्त पर कृपा कीजिये। सुमुखि! पहले शिवलोक में आपलोगों ने मुझे जो वरदान दिया था, उस वर को आपको सफल करना चाहिये।
परशुराम द्वारा किये गये इस स्तवन को सुनकर अम्बिका का मन प्रसन्न हो गया और भय मत करो यों कहकर वे वहीं अन्तर्धान हो गयीं। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस परशुरामकृत स्तोत्र का पाठ करता है, वह अनायास ही महान् भय से छूट जाता है। वह त्रिलोकी में पूजित, त्रैलोक्यविजयी, ज्ञानियों में श्रेष्ठ और शत्रुपक्ष का विमर्दन करनेवाला हो जाता है।
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स्त्रोत :- यह स्तोत्र ब्रह्मवैवर्तपुराण के गणपतिखण्ड से उद्धृत है।

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